Surdas Ke Dohe – 5 Best सूरदास के दोहे अर्थ सहित।

जीवन परिचय

सूरदास जी हिन्दी के भक्तिकाल के महान कवि थे।

जन्म और स्थान : 1478 ईसवी मे ,रुनकता गांव, आगरा मथुरा मार्ग स्थित,उत्तरप्रदेश ,भारत ।
पिता : पंडित रामदास ( गायक )
गुरु : श्रीबल्लभाचार्य जी ।
रचनायें : सूरसागर ,सूरसरावली ,साहित्यलहरी ,नल-दमयन्ती ,ब्याहलो ।
मृत्यु : 1583 गोवर्धन के निकट पारसौली ग्राम

सूरदास के 5 दोहे अर्थ सहित | Surdas Ke 5 Dohe Arth Sahit

चरण कमल बंदो  हरी राइ ।
जाकी कृपा पंगु गिरी लांघें अँधे को सब कुछ दरसाई।।
बहिरो सुनै मूक पुनि बोले रंक चले सर छत्र धराई।
सूरदास स्वामी करुणामय बार- बार बंदौ तेहि पाई ।।

surdas ke dohe- 1

अर्थ : सूरदास जी के इस दोहे में, वे भगवान कृष्ण के चरण कमलों की वंदना करते हैं। वे कहते हैं कि जिनकी कृपा से पंगु भी पहाड़ को पार कर सकता है, अंधे को सब कुछ दिखाई दे सकता है, और बहरे को सुनाई दे सकता है। सूरदास कहते हैं कि ऐसे करुणामय भगवान के चरणों को बार-बार वंदना करनी चाहिए।

उधौ मन न भये दस बीस ।
एक हुतौ सौ गयो स्याम संग ,को अराधे ईस ।।
इन्द्री सिथिल भई केसव बिनु ,ज्यो देहि बिनु सीस ।
आसा लागि रहित तन स्वाहा ,जीवहि कोटि बरीस।।
तुम तौ सखा स्याम सुंदर के ,सकल जोग के ईस ।
सूर हमारे नंद -नंदन बिनु और नही जगदीस ।।

surdas ji ke dohe-2

अर्थ : सूरदास जी इस दोहे में कृष्ण की भक्ति के महत्व को बताते हैं। वे कहते हैं कि एक बार कृष्ण की भक्ति में मन लग गया, तो फिर किसी और ईश्वर की आवश्यकता नहीं रह जाती है। कृष्ण की भक्ति से इंद्रियां भी शक्तिशाली हो जाती हैं। आशा के बिना रहकर भी जीव को कोटि वर्षों तक जीवित रहना चाहिए।

चरण कमल बंदो हरी राइ ।
जाकी कृपा पंगु गिरी लांघें अँधे को सब कुछ दरसाई।।
बहिरो सुनै मूक पुनि बोले रंक चले सर छत्र धराई।
सूरदास स्वामी करुणामय बार- बार बंदौ तेहि पाई।।

surdas ke dohe in hindi 3

अर्थ :  सूरदास जी श्री हरि की कृपा की महिमा का वर्णन करते हैं। वे कहते हैं कि श्री हरि की कृपा से कोई भी कठिन काम आसान हो जाता है। पंगु पर्वत को लांघ सकता है, अंधे को सब कुछ दिखाई देने लगता है, बहरा सुनने लगता है, और गूँगा बोलने लगता है। श्री हरि की कृपा से अत्यंत निर्धन भी राजा बन जाता है।

निरगुन कौन देस को वासी ।
मधुकर किह समुझाई सौह दै, बूझति सांची न हांसी।।
को है जनक ,कौन है जननि ,कौन नारि कौन दासी ।
कैसे बरन भेष है कैसो ,किहं रस में अभिलासी ।।
पावैगो पुनि कियौ आपनो, जा रे करेगी गांसी ।
सुनत मौन हवै रह्यौ बावरों, सुर सबै मति नासी ।।

surdas ke 5 dohe 4

अर्थ : सूरदास ने भ्रमरगीत सार में उद्वव को मथुरा से ब्रज संदेश लेकर भेजा है। उद्वव, योग और ब्रह्म का ज्ञान। उनका प्रेम कोई संबंध नहीं है।गोपियों को निराकारब्रह्म और योग की शिक्षा पसंद नहीं आती।गोपियाँ क्रोधित हो जाती हैं और उद्वव को काले भवँरे की तुलना करती हैं। भ्रमरगीत सार उनकी बातचीत का नाम था। सूरदास ने भ्रमरगीत सार में उद्वव को मथुरा से ब्रज संदेश लेकर भेजा है। उद्वव, योग और ब्रह्म का ज्ञान। उनका प्रेम कोई संबंध नहीं है।गोपियों को निराकारब्रह्म और योग की शिक्षा पसंद नहीं आती।गोपियाँ क्रोधित हो जाती हैं और उद्वव को काले भवँरे की तुलना करती हैं। भ्रमरगीत सार उनकी बातचीत का नाम था।

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बुझत स्याम कौन तू गोरी। कहां रहति काकी है बेटी देखी नही कहूं ब्रज खोरी ।।
काहे को हम ब्रजतन आवति खेलति रहहि आपनी पौरी ।
सुनत रहति स्त्रवननि नंद ढोटा करत फिरत माखन दधि चोरी ।।
तुम्हरो कहा चोरी हम लैहैं खेलन चलौ संग मिलि जोरी ।

surdas ji ke dohe in hindi 5

अर्थ : इस प्रकार, श्रीकृष्ण की बातों में राधा को बहलाकर वे उन्हें अपने साथ खेलने के लिए ले जाते हैं। यह श्रीकृष्ण और राधा के प्रेम की शुरुआत का प्रतीक है।

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