कौन थे कबीर दास?
साईं इतना दीजिए जा में कुटुम समाय।
मैं भी भूखा न रहूँ, साधू न भूखा जाए।
गुरु गोविन्द दोऊ खड़े, काके लागूं पाय।
बलिहारी गुरु आपनो, गोविन्द दियो बताय।
काहे रे बन के बिहारी, बिना धन के सो जाए।
मन चंगा तो कठौती में, क्यों डरैं चंगा खाए।
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कबीरा खड़ा बाजार में, मांगे सबकी खैर।
ना काहू से दोस्ती, ना काहू से बैर।
माटी कहे कुम्हार से, तू क्या रौंदे मोय।
इक दिन ऐसा आएगा, मैं रौंदूँगा तोय।
ज्ञानी होवे नर मुआ, मूआ नर कहावाँ।
अविद्या ज्ञान से मूआ, जागा रहे कहाँ।
माया मुरख जगत का संग, राम नाम रथी चला।
मन बुद्धि छान्द बढ़ाए, दुर्बल बालक गरला।
बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलिया कोय।
जो मन खोजा अपना, तो मुझसे बुरा न कोय।
दुःख में सुमिरन सब करे, सुख में करे न कोय।
जो सुख में सुमिरन करे, दुःख काहे को होय।
काम चोर दुनिया छोड़, बैठ अकेला रोय।
राती चला भटकता, दिन में आया कोय।
बहुत दिन तक बन्दी बानी थी बाजी न जाय।
एक दिन काबीर बाजी बनाया, सभी हंसते हंसते जाय।
छिप छिप रह कर, राजा नहीं जाए।
छिप कर देख लेना, राजा वहीं जाए।
दुनिया तारीख देखेंगी, छप्पर फाड़ कर।
काबीरा तेरे गर्भ में, मुछ कलप जलेंगे।
बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलिया कोय।
माला फेरत जुग भया, फिरा न मन का फेर।
दुःख में सुमिरन सब करे, सुख में करे न कोय।
सुख में सुमिरन करे, दुःख काहे को होय।
बिगरी बात बने नहीं, न बने बिगरी जाय।
कहै कबीर जी, बिगरी कहे न कोय।
गुरु गोविन्द दोऊ खड़े, काके लागूं पाय।
बलिहारी गुरु आपनो, गोविन्द दियो बताय।