“रहिमन धागा प्रेम का, मत तोरो चटकाय, टूटे पे फिर ना जुरे, जुरे गाँठ परी जाय।” इस ब्लॉग में आप Rahim Ke Dohe पढ़ेंगे। आपको बता दें कि 17 दिसंबर 1556 ईस्वी में लाहौर में अब्दुल रहीम खानखाना का जन्म हुआ था। इनके पिता का नाम बैरम खां था, और माता का नाम जमाल खान था, और माता का नाम सईदा बेगम था। उनकी पत्नी महाबानू बेगम थी। 1576 में उन्हें गुजरात का सूबेदार बनाया गया था। 28 वर्ष की उम्र में अकबर ने उनको खाद्य पदक दिया। वह अकेला अकबर के नौ रत्नों में था जिनका कलम और तलवार दोनों पर समान अधिकार था। उनकी मृत्यु 1 अक्टूबर 1627 ई में हुई। तो आइए अब जानते है Rahim Ke Dohe क्या क्या थे।
रहीमदास के जीवन
1561 ई. में रहीम के पिता को गुजरात के पाटन में मार डाला गया था, जब वे पांच वर्ष के थे। अकबर ने खुद इनकी देखभाल की।
- इनकी कार्यक्षमता से प्रभावित होकर अकबर ने 1572 ई. में गुजरात की चढ़ाई के अवसर पर इन्हें पाटन की जागीर प्रदान की। अकबर के शासनकाल में उनकी निरन्तर पदोन्नति होती रही।
- 1576 ई. में गुजरात विजय के बाद इन्हें गुजरात की सूबेदारी मिली।
- 1579 ई. में इन्हें ‘मीर अर्जु’ का पद प्रदान किया गया।
- 1583 ई. में इन्होंने बड़ी योग्यता से गुजरात के उपद्रव का दमन किया।
- अकबर ने प्रसन्न होकर 1584 ई. में इन्हें ख़ानख़ाना’ की उपाधि और पंचहज़ारी का मनसब प्रदान किया ।|
- 1589 ई. में इन्हें ‘वकील’ की पदवी से सम्मानित किया गया।
- 1604 ई. में शहज़ादा दानियाल की मृत्यु और अबुलफ़ज़ल के बाद इन्हें दक्षिण का पूरा अधिकार मिल गया जहाँगीर के शासन के प्रारम्भिक दिनों में इन्हें पूर्ववत सम्मान मिलता रहा।
- 1623 ई. में शाहजहाँ के विद्रोही होने पर इन्होंने जहाँगीर के विरुद्ध उनका साथ दिया।
- 1625 ई. में इन्होंने क्षमा याचना कर ली और पुन: ‘ख़ानख़ाना’ की उपाधि मिली।
- 1626 ई. में 70 वर्ष की अवस्था में इनकी मृत्यु हो गयी।
अर्थ : अर्थात् रहीम कहते हैं कि बड़े को छोटा कहने से बड़े का बड़प्पन नहीं घटता, क्योंकि कृष्ण को मुरलीधर कहने से उनकी महिमा कम नहीं होती।
अर्थ : अर्थात कोयल और कौआ रंग में समान हैं। ये बोलते नहीं तो पहचाना नहीं जा सकता। लेकिन कोयल की मधुर आवाज दोनों को अलग करती है जब वसंत आता है।
अर्थ : अर्थात, रहीम कहते हैं कि नयनों से आंसू बहते हैं, जो मन की पीड़ा व्यक्त करते हैं। ठीक उसी तरह, यह सच है कि जो व्यक्ति घर से बाहर निकाला जाएगा, वह अपने घर का भेद दूसरों से साझा करेगा।
अर्थ : रहीमदास कहते हैं कि धन्य हैं वे लोग जिनका जीवन सदा परोपकारी कामों में व्यतीत होता है, जैसे फूल बेचने वाले के हाथों में फूल की खुशबू रहती है। परोपकारियों का जीवन भी सुगंधित होता है।
टूटे से फिर ना जुड़े, जुड़े गांठ परि जाय।।
अर्थ : अरहीम कहते हैं कि बड़ी या महंगी चीज हाथ लगने पर छोटी या सस्ती चीज का मूल्य कम नहीं होता। हर चीज का अपना अर्थ है। सूई ही काम करेगी, तलवार नहीं।
अर्थ : रहिमन कहते हैं कि यदि आपका प्रिय आपसे सौ बार रूठे, तो भी रूठे प्रिय को याद करना चाहिए क्योंकि मोतियों की माला बार-बार धागे में पिरो दी जाती है, यदि मोतियों की माला टूट जाए।
9. जैसी परे सो सहि रहे, कहि रहीम यह देह।
हरि नाम सुमिरन करे, सहजै मिलहिं सुखधे।।
अर्थ: रहीम कहते हैं कि यह शरीर जैसा भी पड़ जाए, उसे सहन करना चाहिए। भगवान का नाम याद करते रहो, तो सहज ही सुख प्राप्त हो जाएगा।