नाम | महादेवी वर्मा |
जन्म | 26 मार्च, 1907, फर्रुखाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत |
मृत्यु | 11 सितंबर, 1987, प्रयागराज, उत्तर प्रदेश, भारत |
राष्ट्रीयता | भारतीय |
पिता | गोविंद प्रसाद वर्मा |
माता | हेमरानी देवी |
शिक्षा | मिशन स्कूल इंदौर, क्रॉस्थवेट गर्ल्स कॉलेज |
विवाह | स्वरूप नारायण वर्मा (1914) |
प्रमुख कृतियाँ | नीहार (1930), रश्मि (1932), नीरजा (1934), सांध्यगीत (1936), दीपशिखा (1942), सप्तपर्णा (1959), प्रथम आयाम (1974), अग्निरेखा (1990) |
पुरस्कार | ज्ञानपीठ पुरस्कार (1982), पद्म भूषण (1956), पद्म विभूषण (1986), साहित्य अकादमी पुरस्कार (1956), सोवियत लैंड नेहरू पुरस्कार (1968) |
पेशा | कवयित्री, उपन्यासकार, लघुकथा लेखिका |
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महादेवी वर्मा का जन्म 26 मार्च 1907 को प्रातः 8 बजे फ़र्रुख़ाबाद उत्तर प्रदेश, भारत में हुआ। उनके परिवार में लगभग 200 वर्षों या सात पीढ़ियों के बाद पहली बार पुत्री का जन्म हुआ था। अतः बाबा बाँके विहारी जी हर्ष से झूम उठे और इन्हें घर की देवी — महादेवी मानते हुए पुत्री का नाम महादेवी रखा। उनके पिता श्री गोविंद प्रसाद वर्मा भागलपुर के एक कॉलेज में प्राध्यापक थे। उनकी माता हेमरानी साधारण कवयित्री थीं। महादेवी वर्मा का बचपन फ़र्रुख़ाबाद और बनारस में बीता। उन्होंने प्रारंभिक शिक्षा उज्जैन में प्राप्त की। नौ वर्ष की छोटी उम्र में ही उनका विवाह स्वरूपनारायण वर्मा से हुआ।
महादेवी वर्मा की रचनाएँ | Mahadevi Verma ki Rachnaen
कविता संग्रह: नीहार (1930), रश्मि (1932), नीरजा (1934), सांध्यगीत (1936), दीपशिखा (1942), सप्तपर्णा (1959), प्रथम आयाम (1974), और अग्निरेखा (1990)
गद्य: स्मृति की रेखाएँ (1943), मेरा परिवार (1944), शृंखला की कड़ी (1946), नीरजा (1946), स्मारिका (1949), नारी (1951), त्रिभुवन (1955), आत्मिका (1960), संधिनी (1965), सांध्यगीत (1974), हिमालय (1963), और आधुनिक कवि (1968)
बाल साहित्य: एक फूल की कहानी (1940), रानी लक्ष्मीबाई (1942), और वीरता की कथाएँ (1942)
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Mahadevi Verma Poems In Hindi | Mahadevi Verma Ki Kavita- (कविता संग्रह)
आत्मिका:
आत्मा की गहराई में झाँकती,
स्वप्नों की रंगत से सराबोर,
जीवन के रहस्यों को खोलती,
कविता आत्मिका, प्यार की धार।
निरंतरा:
समय की धारा में निरंतर बहती,
पल-पल बदलती, फिर भी स्थिर,
जीवन की कहानी कहती,
कविता निरंतरा, सत्य की दलील।
परिक्रमा:
विविधता का संगम, प्रेम का चक्र,
संस्कृति का रंग, जीवन का नख,
जोड़ती सबको एक धागे में,
कविता परिक्रमा, मानवता की सख।
सन्धिनी (1965):
समय के मोड़ पर खड़ी सन्धिनी,
अतीत की छाया, भविष्य का सपना,
जीवन की सन्ध्या में जगती,
कविता सन्धिनी, आशा का दीप जलाना।
यामा (1936):
पहाड़ों की ऊँचाई, घाटियों की गहराई,
प्रकृति का नृत्य, जीवन का सार,
जगाती आत्मा की तृष्णा,
कविता यामा, प्रकृति का उपहार।
गीतपर्व:
लय और ताल का संगम, शब्दों का झनकार,
उल्लास का तूफान, जीवन का हर्ष,
मन को छू लेती, आत्मा को नचाती,
कविता गीतपर्व, खुशियों की बरसात।
दीपगीत:
ज्ञान का प्रकाश फैलाती, अंधकार धुआँ करती,
जीवन के रास्ते रोशन करती,
उम्मीद जगाती, हौसला बढ़ाती,
कविता दीपगीत, सत्य का रास्ता दिखाती।
स्मारिका:
यादों का संदूक, पलों की तस्वीर,
जीवन की यात्रा, समय का सफर,
समेट लेती बीते पल,
कविता स्मारिका, जीवन का दर्पण।
हिमालय:
धवल शिखरों का सौन्दर्य, गहरी घाटियों का रहस्य,
नदियों का संगीत, चट्टानों की मजबूती,
प्रकृति का वैभव, मानव की छोटी,
कविता हिमालय, जीवन का सच बताती।
आधुनिक कवि:
हर युग का दर्पण, समाज का प्रतिबिम्ब,
नवीन विचारों का संग्रह, सवालों का सार,
जगाता समाज को, सोचने को बाध्य करता,
कविता आधुनिक कवि, बदलाव का नगाड़ा।
महादेवी वर्मा की कुछ प्रसिद्ध कहानियाँ निम्नलिखित हैं: Mahadevi Verma Stories In Hindi
- गिल्लू
- बिंदा
- सोना हिरनी
- नीलामम्बरा
- मेरा परिवार
- स्मृति की रेखाएं
- पथ के साथी
- शृंखला की कड़ियाँ
मृत्यु
महादेवी वर्मा का निधन 11 सितंबर 1987 को प्रयागराज में हुआ। वे हिन्दी साहित्य की एक अमर हस्ती थी और उनकी कविताएँ आज भी लोगों को प्रेरित करती हैं।
FAQs
Q1. महादेवी वर्मा की कुल कितनी रचनाएं हैं?
Ans. महादेवी वर्मा की कुल 18 रचनाएं हैं।
Q2. महादेवी वर्मा ने सबसे पहले कौन सी पुस्तक पढ़ी थी?
Ans. महादेवी वर्मा ने सबसे पहले “पंचतंत्र” पुस्तक पढ़ी थी
Q3. महादेवी वर्मा को क्या कहा जाता था?
Ans. महादेवी वर्मा हिंदी साहित्य की छायावादी युग की प्रमुख स्तंभों में से एक थी। वे आधुनिक युग की सबसे सशक्त कवयित्रियों में से एक होने के कारण उन्हें आधुनिक मीरा के नाम से भी जाना जाता था। कवि निराला ने उन्हें “हिन्दी के विशाल मन्दिर की सरस्वती” भी कहा था।