गोस्वामी तुलसीदास का परिचय | Tulsidas ka Jiwan Parichay
हिंदू समाज में बहुत प्रसिद्ध संत, लेखक और कवि थे, संत तुलसीदास, जिन्हें स्वानी तुंसीदास के नाम से भी जाना जाता है। बहुत सी किताबें लिखीं जो सनातन धर्म और भारतीय विचारधारा को व्यक्त करती हैं। उन्हें हनुमान चालीसा के लेखक भी कहा जाता है, जो उनकी सबसे प्रसिद्ध पुस्तक है, राम चरितमानस।
ऐसा भी कहा जाता है कि तुलसीदास संत वाल्मिकी के रूप में थे और हनुमान भी अपने आश्रम में अपना रामायण श्रवण करते थे। तुलसीदास हनुमान के दर्शन पर दिखाए गए चित्र, जहां उन्हें भगवान राम के भी दर्शन हुए।
गोस्वामी तुलसीदास का जन्म | Tulsidas ka Janm
तुलसीदास (tulsidas ka janm) का जन्म 16वीं शताब्दी में उत्तरी भारत के सूकरखेत सोरों में हुआ था जिसे आधुनिक उत्तर प्रदेश कहा जाता है, उनका जन्म सन् 1532 ईसा पूर्व में हुआ था। उनके पिता आत्माराम जीसस और माता हुलसी देवी थीं। तुलसीदास के बचपन में ही उनका जन्म हुआ और रोने की जगह पर उनके मुख से “राम” निकले और बचपन में उनका नाम रामबोला रखा गया। देवताओं के जन्म के कारण उनके माता-पिता ने उनका त्याग कर दिया और अपनी एक दासी चुनरी के साथ अपने गाँव हरिपुर भेज दिया।
Tulsi Das Ke Dohe With Meaning in Hindi
‘तुलसी’ काया खेत है, मनसा भयौ किसान।
पाप-पुण्य दोऊ बीज हैं, बुवै सो लूणै निदान॥
अर्थ: गोस्वामी जी कहते हैं कि शरीर मानो खेत है, मन मानो किसान है। इसमें किसान पाप और पुण्य रूपी के दो प्रकार के प्रतीक बताए गए हैं। जैसे बीज बोगे वैसे ही इसे अंत में फल काटने वाले को मिलेंगे। भाव यह है कि यदि मनुष्य शुभ कर्म करेगा तो उसका फल भी शुभ मिलेगा और यदि पाप कर्म करेगा तो उसका फल भी बुरा ही मिलेगा।
तुलसी हरि अपमान तें, होइ आकाश समाज।
राज करत राज मिलि गेव, सदल सकुल कुरुराज॥
अर्थ: लसी कहते हैं कि श्री हरि का अपमान करने से समाज का नुकसान होता है यानी नुकसान-ही-हानी होती है। भगवान श्री कृष्ण का अपमान करने से राज्य में कुरुराज दुर्योधन अपनी सेना और कुटुंब के सहित गंदगी में मिल गए।
तुलसी हठी-हथि कहत नित, चित सुनि हित करि मनि।
लाभ राम सुमिरन बड़ी, बड़े बिसारें हानि॥
अर्थ: तुलसी नित्य-निरंतर बड़े आग्रह के साथ कहते हैं कि हे चित्त! तू मेरी बात सुनकर उसे हितकारी समझ। राम का स्मरण ही बड़ा भारी लाभ है और उसे भुलाने में ही सबसे बड़ी हानि है।
राम नाम कलि कामतरु, राम भगति सुरधेनु।
सकल सुमंगल मूल जग, गुरुपद पंकज रेनु॥
अर्थ: कलियुग में राम नाम मनचाहा फल देने वाले कल्पवृक्ष के समान है, रामभक्ति मुँह माँगी वस्तु देने वाली कामधेनु है और श्री सद्गुरु के चरण कमल की रज संसार में सब प्रकार के मंगलों की जड़ है।
बरषा रितु रघुपति भगति, तुलसी सालि सुदास।
रामनाम बर बरन जुग, सावन भादव मास॥
अर्थ: तुलसीदास जी कहते हैं कि श्री रघुनाथ जी की भक्ति वर्षा-ऋतु है, उत्तम सेवकगण (प्रेमी भक्त) धान हैं और राम नाम के दो सुंदर अक्षर सावन-भादों के महीने हैं (अर्थात् जैसे वर्षा-ऋतु के श्रावण, भाद्रपद- इन दो महीनो में धान लहलहा उठता है, वैसे ही भक्ति पूर्वक श्री राम नाम का जप करने से भक्तों को अत्यंत सुख मिलता है।
तुलसी के दोहे का भावार्थ
सूर समर करनी करहीं, कहि न जनावहिं आप।
विद्यमान रिपु पाइ रन, कायर करहिं प्रलाप॥
अर्थ: शूरवीर युद्ध में काम करके दिखाते हैं, मुँह से बातें बना कर अपनी बड़ाई नहीं करते। इसके विपरीत कायर पुरुष युद्ध में शत्रु को सामने देखकर बकवाद करने लगते हैं। भाव यह है कि वीर पुरुष काम करके दिखाते हैं, बातें नहीं बनाते और नीच पुरुष बातें तो बढ़कर बनाते हैं पर काम के समय भाग जाते हैं।
तुलसी मीठे बचन ते, सुख उपजत चहुँ ओर ।
बसीकरन इक मंत्र है, परिहरू बचन कठोर ।।
अर्थ: तुलसीदास जी के दोहे का ये मतलब है: मीठे वचन से हम सब ओर सुख फैला सकते हैं। किसी को भी वश में करने के लिए मिठास भरे शब्द एक मन्त्र जैसे होते हैं इसलिए इंसान को चाहिए कि कठोर वचन छोडकर मीठा बोलने का प्रयास करे और अनजानों को भी अपना बना ले I
दया धर्म का मूल है पाप मूल अभिमान,
तुलसी दया न छोडिये जब तक घट में प्राण ।।
अर्थ: तुलसीदास जी के दोहे का ये मतलब है: धर्म का असली मूल तो दूसरों पर दया रखना है और अभिमान ही पाप की नींव है। इसीलिए जब तक जीवन है इंसान को दया करनी नहीं छोड़नी चाहिए। “
मुखिया मुखु सो चाहिऐ खान पान कहुँ एक |
पालइ पोषइ सकल अंग तुलसी सहित बिबेक ||
अर्थ: तुलसीदास जी के दोहे का ये मतलब है: मुखिया यानि की Leader बिलकुल इंसान के मुख की तरह होना चाहिए। मुख खाना अकेला खाता है लेकिन शरीर के सभी अंगों का बराबर पोषण करता है। उसी तरह मुखिया को अपना काम इस तरह से करना चाहिए की उसका फल सब में बंटे।
Tulsidas Ji Ke Dohe in Hindi
आवत हिय हरषै नहीं, नैनन नहीं सनेह।
‘तुलसी’ तहाँ न जाइए, कंचन बरसे मेह॥
अर्थ: तुलसीदास जी के दोहे (tulsidas ji ke dohe) का ये मतलब है: जहां जाने से वहां के लोग आप को देखते ही प्रसन्न न हों और जिनकी आँखों में प्रेम न हो, ऐसी जगह चाहे कितना ही लाभ और सम्पन्नता क्यों न हो वहाँ कभी नहीं जाना चाहिए।
तुलसी’ साथी विपति के, विद्या, विनय, विवेक।
साहस, सुकृत, सुसत्य–व्रत, राम–भरोसो एक॥
अर्थ: तुलसीदास जी के दोहे (tulsidas ke dohe) का ये मतलब है: किसी विपत्ति के समय आपको ये सात गुण बचाएंगे: आपका ज्ञान, आपकी सीख, आपकी बुद्धि, आपके साहस में, आपके अच्छे कर्म, सच वाणी की आदत और ईश्वर में विश्वास।
घर दीन्हे घर जाता है, घर छोड़े घर जाता है।
‘तुलसी’ घर बन बीच रहू, राम प्रेम-पुर छाय॥
अर्थ: यदि मनुष्य एक स्थान पर घर जाकर बैठ जाता है तो वह वहां की माया-ममता में फंसकर उस प्रभु के घर से विमुख हो जाता है। इसके विपरीत यदि मनुष्य घर छोड़ता है तो अपने घर का गुणगान करता है, इसलिए कवि का कथन है कि भगवान राम के प्रेम का नगर बना कर घर और दोनों के बीच एक समान रूप से रहो, पर आशक्ति किसी में न दिखाओ।
बिनु विश्वास भगति नहीं, तेहि बिनु द्रवहिं न राम।
राम-कृपा बिनु सपनेहुँ, जीव न लहि विश्राम॥
अर्थ: भगवान में विश्वास के बिना मनुष्य को भगवद्भक्ति प्राप्त नहीं हो सकती है और भक्ति के बिना भगवान की कृपा नहीं हो सकती है। जब तक मनुष्य पर भगवान की कृपा नहीं होती तब तक मनुष्य को स्वप्न में भी सुख-शांति नहीं मिल सकती। अत: मनुष्य को भगवान का भजन करना चाहिए ताकि भगवान का भोग हो जाए पर भक्त को सब सुख-संपत्ति प्राप्त हो जाए।
गंगा जमुना सुरसति, सात सिंधु परिपूर्ण।
‘तुलसी’ चातक के मते, बिन स्वाति सब धुर॥
अर्थ: गंगा, यमुना, सरस्वती और सातों समुद्र ये सब जल से अच्छे ही हैं, पर पपीहे के लिए तो स्वाति नक्षत्रों के बिना ये सब जल से समान हैं; क्योंकि पपीहा केवल स्वाति नक्षत्रों में जल ही पीता है। भाव यह है कि साधू प्रेमी अपनी प्रिय वस्तु के बिना किसी अन्य वस्तु को कभी नहीं चाहता, वह वस्तु इतनी ही मूल्यवान क्यों न हो।
उच्च जाति पपीहरा, पियत न नीचौ नीर।
कै याचै सों, कै दु:ख सहै शरीर॥
अर्थ: पपीहा वास्तव में बड़ी ऊंची जाति का है, जो नीचे जमीन पर पड़ा हुआ पानी नहीं पीता। वह या तो बादल से ही पानी मांगता है या उसके शरीर पर दु:ख ही झेलता रहता है। भाव यह है कि श्रेष्ठ पुरुष उत्तम इरादों में कभी कमी नहीं होती, वे सदा उत्कृष्ट गुणों को ही ग्रहण करते हैं।
राम नाम अवलंब बिनु, परमार्थ की आस।
बारत बारिद डोअर गाही, चाहत चढ़न आकाश॥
अर्थ: जो राम नाम का सहारा लिए बिना ही परमार्थ और मोक्ष की आशा करता है, वह तो मानो बरसते हुए बादलों के नारों को अलौकिक आकाश में चढ़ाना चाहता है। अलौकिक आकाश पर चढ़ना असंभव है, वैसे ही राम नाम का जप किए बिना परमार्थ की असंभवता है।